परिवार सदस्यों को एकजुटता में बांधे रखने का प्रमुख केन्द्र है और जब परिवार संस्था का अस्तित्व ही नहीं रहेगा तो फिर मानवीय संवेदना, परस्पर समन्वय, सहयोग और संवेदनशीलता की बात करना ही बेमानी होगा। देखा जाये तो आज की जरूरत बन गयी है पारिवारिक व्यवस्था की मजबूती।
पिछले दिनों दादा साहेब फाल्के पुरस्कार वितरण समारोह में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने पारिवारिक व्यवस्था के बिखराव पर गहरी चिंता व्यक्त करने के साथ ही पारिवारिक व्यवस्था को फिर से मजबूत करने की आवश्यकता प्रतिपादित की है। उनका मानना है कि आज की पीढ़ी में मानवीय मूल्यों की जो तेजी से गिरावट आई है उसका एक बड़ा कारण पारिवारिक व्यवस्था का कमजोर होना है। बदलते सामाजिक परिदृश्य में यदि कुछ बदला है तो वह हमारी पारिवारिक व्यवस्था में बदलाव आया है। पिछले कुछ दशकों में हमारी सनातन पारिवारिक व्यवस्था में तेजी से बदलाव आया है और इस बदलाव का बड़ा कारण है आज का आर्थिक परिदृश्य। हमारा सामाजिक ताना−बाना इस तरह का बना रहा है कि संयुक्त परिवार बोझ ना होकर परस्पर सहयोग व समन्वय के साथ मानवीय मूल्यों का वाहक रहा है। पारिवारिक व्यवस्था के तहस नहस होने का ही परिणाम है कि आज इस पर समाज विज्ञानी गंभीरता से विचार करने लगे हैं। हमारे देश में ही नहीं अपितु यूरोपीय देश भी इस विषय में गंभीर हैं। दुनिया के देशों में इंग्लैंड ने तो इस पर गंभीर चिंतन करना आरंभ कर दिया है वहीं मई की 15 तारीख को दुनिया के देशों द्वारा परिवार दिवस के रूप में मनाना शुरू कर दिया है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1993 में परिवार दिवस घोषित करने और 1996 से परिवार दिवस मनाए जाने के बावजूद यह परवान नहीं चढ़ पाया है।